35. प्रकृति सौन्दर्य पर न्यौछावर (कुमारी
अन्तरीप, कन्या कुमारी)
श्री गुरू नानक देव जी आगे सँगलाद्वीप, श्रीलंका प्रस्थान के
लिए दक्षिण भारत के अन्तिम छोर कन्या कुमारी पहुँचे। वहाँ पर भारत का भू भाग समाप्त
होता है तथा हिन्द महासागर के दर्शन होते हैं। गुरुदेव ने इसी स्थान से एक छोटे
जहाज द्वारा श्रीलंका, सँगला द्वीप की यात्रा आरम्भ कर दी। जहाज की छत पर बैठे
यात्रियों के अनुरोध पर गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को कीर्तन के लिए कहा तथा स्वयँ
प्रकृतिक सौन्दर्य के दृश्यों को अपनी बाणी में चित्रित करने लगे:
कुदरति दिसै कुदरति सुणीऐ कुदरति भउ सुख सारु ।।
कुदरति पाताली आकासी कुदरति सरब आकार ।।
कुदरति वेद पुराण कतेबा, कुदरति सरब वीचारु ।।
कुदरति खाणा पीणा पैनणु कुदरति सरब पिआरु ।।
कुदरति जाती जिनसी रंगी कुदरति जीअ जहान ।। राग आसा, अंग 464