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1661. गुरूद्वारा श्री मँझ जी साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

ग्राम कन्गमाई, जिला होशियारपुर

1662. किस गुरू साहिबान ने भाई मँझ जी को एक लोह लँगर के लिए दी, जो कि गुरूद्वारा साहिब में स्थापित है ?

पाँचवें गुरू, श्री गुरू अरजन देव जी

1663. ग्राम कन्गमाई को किसने बसाया था, जिस स्थान पर गुरूद्वारा श्री मँझ जी साहिब सुशोभित है ?

भाई मँझ जी

1664. गुरूद्वारा श्री हरियाँ वेला साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

ग्राम बजरोड़, जिला होशियारपुर

1665. गुरूद्वारा श्री हरियाँ वेला साहिब जी किससे संबंधित है ?

सातवें गुरू हरिराये जी और साहिबजादा अजीत सिंघ

1666. गुरूद्वारा श्री हरियाँ वेला साहिब, सातवें गुरू हरिराये जी से किस प्रकार संबंधित है ?

यह वो पवित्र स्थान है, जिस स्थान पर सातवें गुरू, श्री गुरू हरिराय साहिब जी 2200 घुड़सवारों समेत 1708 बिक्रमी (सन् 1651) को आए थे। इस स्थान पर तीन दिन रहे। यहाँ पर बाबा प्रजापति जी रहते थे। गुरू जी ने उनके घर चरण डालकर, घर को पावन पवित्र किया। जिस स्थान पर ये घर था, उसी स्थान पर गुरूद्वारा साहिब सुशोभित है। गुरू जी यहाँ पर दिन में दो समय दीवान लगाते थे और इलाही बाणी द्वारा संगतों को निहाल करते थे। बाबा प्रजापती जी ने कुछ पेड-पौधे तोड़कर गुरू जी के घोड़े को खिलाये, गुरू जी ने देखा कि उनका घोड़ा खुश हो गया। गुरू जी ने पुछा कि आपने क्या खिलाया कि हमारा घोड़ा बहुत खुश हो गया। बाबा प्रजापति जी ने कहा, मैं गरीब भला आपके घोड़े का क्या खिला सकता हुं। मैंने तो घर के बाहर उगे हुए पेड-पौधे तोड़ के खिलाए हैं। गुरू जी ने कहा कि पेड-पौधे हमेशा हरे ही रहेंगे। ये पेड़ इस स्थान पर निशान साहिब के बाद लगे हुए हैं। इस स्थान पर पानी की समस्या को दूर करने के लिए गुरू जी ने धरती में तीर मारा, जिससे पानी का चश्मा फूट पड़ा। यहाँ पर मोती सरोवर बना।

1667. गुरूद्वारा श्री हरियाँ वेला साहिब, साहिबजादा अजीत सिंघ जी से किस प्रकार संबंधित है ?

इस स्थान पर दसवें गुरू जी के पुत्र साहिबजादा अजीत सिंघ जी भी आए थे, जब वो 200 सिक्खों के साथ श्री आनंदपुर साहिब से महिलपुर, शहीदां लदेवाल, चखुँदी साहिब बजरोड़ जा रहे थे। बाबा अजीत सिंघ जी, जिस स्थान पर निशान साहिब है, वहाँ रूके थे। अजीत सिंघ जी पारस ब्राहम्ण की याचना पर जा रहे थे, जिसकी पत्नि को जाबर खान पठान ने पकड़ लिया था। जाबर खान के साथ लड़ाई में बहुत सारे सिंघ शहीद हो गए, जिनका सँस्कार गुरूद्वारा साहिब जी के नजदीक ही किया गया।

1668. गुरूद्वारा श्री जाँद साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

ग्राम लाहली कलां, जिला होशियारपुर

1669. गुरूद्वारा श्री जाँद साहिब किस गुरू से संबंधित है ?

सातवें गुरू हरिराये जी

1670. गुरूद्वारा श्री जाँद साहिब गुरू हरिराये जी से किस प्रकार संबंधित है ?

यह वो पवित्र स्थान है, जिस स्थान पर दिवाली के मौके पर सातवें गुरू, श्री गुरू हरिराये साहिब जी श्री अमृतसर साहिब जी जाने से पहले अपनी बटालियन के साथ जिसमें 2200 घुड़सवार थे, अपने चरणों से इस स्थान को धन्य किया। गुरू जी यहाँ पर तीन दिन रहे।

1671. गुरूद्वारा श्री जाँद साहिब जी का नाम जाँद साहिब कैसे पड़ा ?

गुरू जी ने अपना घोड़ा एक जाँद के पेड़ से बाँधा था। ये पेड़ गुरूद्वारा साहिब जी में सुशोभित है।

1672. श्री पातशाही दसवीं साहिब जी , नैनोवाल किस स्थान पर सुशोभित है ?

ग्राम नैनोवाल, तहसील गरशँकर, जिला होशियारपुर

1673. श्री पातशाही दसवीं साहिब जी,  नैनोवाल किस गुरू से संबंधित है ?

दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी

1674. श्री पातशाही दसवीं साहिब जी, नैनोवाल श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी से किस प्रकार संबंधित है ?

इस पावन पवित्र स्थान पर दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी महाराज ने भाई संगत साहिब जी की सेवा से खुश होकर उन्हें सम्मानित किया था। गुरू साहिब जी ने भाई साहिब जी को एक हुकुमनामा भेंट किया था, जो कि गुरूद्वारा साहिब जी में सुशोभित है।

1675. गुरूद्वारा श्री शहीदां साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

ग्राम लद्येवाल, तहसील महलपुर, जिला होशियारपुर

1676. गुरूद्वारा श्री शहीदां साहिब किस की याद में सुशोभित है ?

साहिबजादा अजीत सिंघ जी

1677. गुरूद्वारा श्री शहीदां साहिब जी का इतिहास क्या है ?

बसिआं का मालिक हाकम जाबर खान इस इलाके के हिन्दूओं पर हर प्रकार का जूल्म और जबरन लडकियों, औरतों की बेइज्जती करता था। एक प्रसँग में होशियारपुर जिले के जोजे शहर के गरीब ब्राहम्ण की धर्म-पत्नि की डोली हाकम जाबर खान हथिया कर अपने महल ले आया। दुखी ब्राहम्ण धार्मिक आगूओं, राजाओं के पास जाकर रोया, लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। फिर देवी दास गुरू गोबिन्द सिंघ जी के पास आनंदपुर सहिब जा पहुंचा और घटना कही। गुरू जी ने अजीत सिंघ के साथ 200 बहादुर सिक्खों का जत्था हाकम जाबर खान को सबक सिखाने के लिए भेजा। अजीत सिंघ ने अपने जत्थे समेत जाबर खान पर हमला किया, धमासान की जँग में धायल जाबर खान को बाँध लिया गया, साथ ही देवीदास की पत्नि को देवी दास के साथ उसके घर भेज दिया। साहिबजादा अजीत सिंघ जी सोमवार की शाम को इस पवित्र स्थान पर पहुँचे, जहाँ गुरूद्वारा शहीदां लदेवाल महिलपुर स्थित है। जखमी सिंघों मे से कुछ रात को शहीद हो गये। उन सिंघों का सँस्कार अजीत सिंघ जी ने सवेरे अपने हाथों से किया। सँस्कार के बाद अजीत सिंघ जी ने अपने बाकी साथियों के साथ श्री आनंदपुर साहिब जी कूच किया। शहीदों की याद में इस गुरूद्वारा साहिब जी में हर मँगलवार को एक भारी जोड़ मेला लगता है।

1678. गुरूद्वारा श्री जाहरा जहूर साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

यह गुरूद्वारा साहिब, होशियारपुर सिटी से आऊट साइड पर है। जिला होशियारपुर।

1679. गुरूद्वारा श्री जाहरा जहूर साहिब का इतिहास से क्या संबंध है ?

छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी इस स्थान पर गुरूद्वारा श्री गरना साहिब से श्री कीरतपुर साहिब यहाँ पर शेर का शिकार करने के लिए ठहरे। यहाँ पर मुसलमान पुजारी था जिसने गुरू जी की सेवा की। गुरू जी ने पुजारी को वर दिया कि लोग तुम्हें जाहरा पीर कहकर पूजा करेंगे। यहाँ पर गुरू साहिब जी के समय का एक कुँआ भी है। इस गुरूद्वारा साहिब जी में हर साल बसंत पँचमी का मेला लगता है।

1680. गुरूद्वारा श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी, भरता गनेशपुर किस स्थान पर सुशोभित है ?

ग्राम भरता गनेशपुर, तहसील महलपुर, जिला होशियारपुर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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