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1781. गुरूद्वारा श्री रकाबसर साहिब जी, जिला मुक्तसर का इतिहास क्या है ?

  • दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी महाराज इस स्थान पर घोड़े पर सवार होने लगे, तो घोड़े की एक रकाब टुट गई, जो कि गुरूद्वारा साहिब जी में मौजुद है। यहीं से घोड़े पर सवार होकर खिदराणे की ढाब और टुटी गँढी पहुँचे।

1782. गुरूद्वारा श्री शहीदगँज साहिब जी, जिला मुक्तसर साहिब जी में कहाँ सुशोभित है ?

  • मुक्तसर सिटी (यह गुरूद्वारा साहिब, गुरूद्वारा श्री टुटी गँढी के पिछ है)।

1783. गुरूद्वारा श्री शहीदगँज साहिब का इतिहास क्या है ?

  • गुरदुआरा श्री शहीदगँज साहिब (श्री अँगीठा साहिब), यह वो पावन-पवित्र स्थान है, जिस स्थान पर दसवें गुरू साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी महाराज ने शहीद हुए 40 मुक्तों का सँस्कार 21 वैसाख संमत 1762 बिक्रमी (सन् 1705) को किया। शहीद हुए 40 मुक्तों की याद में इस गुरूद्वारा साहिब जी में हर 1 माघ को जोड़ मेले का आयोजन किया जाता है।

1784. गुरूद्वारा श्री तम्बु साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • मुक्तसर सिटी, जिला मुक्तसर (ये गुरूद्वारा साहिब, गुरूद्वारा श्री टुटी गँढी के साथ ही है)।

1785. गुरूद्वारा श्री तम्बु साहिब जी का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • इस स्थान पर सिक्खों का कैम्प था। इसी स्थान पर सिंघों ने दुशमनों की फौजों को भ्रम में डालने के लिए ढाब के किनारे उगी हुई झाड़ियों पर अपने वस्त्र चादरें और कछेहरे (अन्डर-वियर) आदि डालकर तम्बुओं का रूप दिया। गुरू जी जँग के बाद दुसरी बार खिदराणे की ढाब पर पहुँचे, तो गुरू जी का तम्बू इस स्थान पर लगा था। बिलकुल इसके पास गुरूद्वारा माता भाग कौर जी का है, जिन्होनें 11 सेर की साँग पकड़कर दुशमनों से दो-दो हाथ किये और शरीर पर 22 जख्म खाकर सख्त जख्मी हो गये, लेकिन गुरू की कृपा से स्वस्थ हो गए और गुरू जी के साथ ही आगे चले गये।

1786. गुरूद्वारा "श्री तरन तारन साहिब जी", जिला मुक्तसर साहिब जी में किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • मुक्तसर सिटी, जिला मुक्तसर साहिब जी

1787. गुरूद्वारा श्री तरन तारन साहिब जी, जिला मुक्तसर साहिब जी का क्या इतिहास है ?

  • दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी बिदराणे की ढाब से रूपाणा जाते समय इस स्थान पर रूके थे। सिक्खों ने रूकने का कारण पुछा, तो गुरू जी ने कहा कि इस स्थान पर ऋषि मुनि बहुत समय तक तप करते रहे थे। यहाँ पर बहुत सुन्दर स्थान बनेगा और यहाँ पर जो छपड़ी है, वो सरोवर बनेगा, इसमें स्नान करके मानसिक और शारीरिक रोगों का नाश होगा। निश्चय ही यहाँ पर स्नान करने से लाइलाज रोगों से छुटकारा मिलता है। हर रविवार को दीवान सजते हैं।

1788. गुरूद्वारा श्री टिब्बी साहिब जी, जिला मुक्तसर साहिब जी में किस स्थान पर सुशोभित है और किस गुरू साहिबान से संबंधित है ?

  • मुक्तसर सिटी, जिला मुक्तसर साहिब जी। यह गुरूद्वारा साहिब दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी से संबंधित है।

1789. गुरूद्वारा श्री टिब्बी साहिब जी , जिला मुक्तसर साहिब जी का इतिहास क्या है ?

  • बिक्रमी संमत् 1762 (सन् 1705) में, दसवें गुरू गोबिन्द सिंघ जी बिदराणे की ढाब देखकर भाई दान सिंघ की सलाह और विनती से यहाँ पर पहुँचे। यहाँ पर बहुत ऊँचा टिब्बा था, इस टिब्बे के ऊपर गुरू जी ने अपना आसन लगाया। जब बिदराणे की ढाब पर जँग चल रही थी, तब गुरू जी ने इसी टिब्बे से ही तुरक फौजों पर तीरों की बारिश की थी। औरँगजेब की फौजें, जो जनरैल वजीर खान लेकर आया था। यहाँ पर गुरू जी ने जीत प्राप्त की थी। यह गुरू जी की जीत का स्थान है। यहाँ से गुरू जी बिदराणे की ढाब पहुँचे और सिक्खों की महान कुर्बानी देखकर वर दिये।

1790. गुरूद्वारा श्री टुटी गँढी साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • मुक्तसर सिटी, जिला मुक्तसर साहिब जी

1791. गुरूद्वारा श्री टुटी गँढी साहिब जी का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • श्री अनंदपुर साहिब जी के युद्ध के समय कुछ सिक्ख दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी को बेदावा लिखकर दे आए थे। माता भाग कौर की प्रेरणा से 40 सिक्ख अपनी भूल माफ करवाने के लिए गुरू जी को ढूँढते हुए पहुँचे। मुगल सेना गुरू जी को तलाश कर रही थी, उनका 21 वैसाख संमत 1762 बिक्रमी (सन् 1705) को इस स्थान पर इन 40 सिक्खों के साथ युद्ध हुआ। सिक्ख बहुत बहादुरी से लड़े और शहीद हो गए। युद्ध होने की बात पता लगने पर गुरू जी यहाँ पर आए, सिक्खों के चेहरे साफ किए, बखशीशें दीं– ये मेरा पाँच हजारी योद्धा, ये मेरा दस हजारी योद्धा आदि। गुरू जी आगे बढ़े, तो देखा कि भाई माहां सिंघ जी की साँसे चल रही हैं। मुँह में जल डालने के बाद उन्होंने आँखें खोलीं, तो गुरू जी ने कहा कि माहां सिंघ हम आ गये हैं, माँग ले जो भी माँगना है। माहां सिंघ ने कहा कि वो बेदावा वाला कागज फाड़ दो, गुरू जी ने बेदावा फाड़कर टुटी गँढी और मुक्ति का वर दिया। इस पवित्र स्थान बिदराणे की ढाब को श्री मुक्तसर साहिब जी नाम दिया।

1792. गुरूद्वारा श्री चरणकँवल साहिब, जो कि बँगा टाउन, जिला नवाँशहर, शहीद भगत सिंह नगर में है, का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • ये इतिहासिक गुरदुआरा मीरी पीरी के मालिक छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की पवित्र याद में शेरे पँजाब महाराजा रणजीत सिंघ जी ने बनवाया था। गुरू जी करतारपुर की आखिरी जँग में पैंदे खाँ को मारकर बिक्रमी 1691 (1634) में श्री कीरतपुर साहिब जी जाते हुऐ 20 हाड़ को यहाँ पर आए थे। गुरू जी के साथ गुरू हरिराए साहिब जी, बाबा गुरदित्ता जी, गुरू तेग बहादर जी (जब वो छोटे थे) और माता नानकी जी भी थे। गुरू जी यहाँ पर 1 महीना ठहरे और जख्मी सोहेले घोड़े का इलाज भी यहाँ पर होता रहा। भाई जीणे के नाम से इस गाँव का नाम जिंदेवाल रखा गया। इस गुरूद्वारा साहिब जी के नाम 35 एकड़ जमीन है। हर साल 21 हाड़ को बड़ा भारी मेला लगता है।

1793. गुरूद्वारा श्री बहिर साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम बहिर, जिला पटियाला

1794. गुरूद्वारा श्री बहिर साहिब जी का इतिहास क्या है ?

  • नवें गुरू, श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी मालवे की यात्रा के समय धमधाण साहिब से चलकर परिवार समेत कतक वदी 5 संवत बिक्रमी 1723 (सन् 1666) को बहिर आये, तो आगे मल्ला नामी तरखान सिक्ख ने माथा टेका और अपने घर ले जाकर माताओं ने माताओं की सेवा की और मल्ले सिक्ख ने गुरू जी की सेवा की। और सारी रात ज्ञान की बातें करता रहा। सुबह गुरू जी सरूमती में स्नान करके नितनेम का पाठ कर रहे थे, तो गाँव के लोगों ने गुरू जी को माथा टेका और कहा कि हम बहुत गरीब हैं, हमारी गरीबी दूर करो। गुरू जी ने कहा कि तम्बाकू छोड़ दो, गरीबी दूर हो जाएगी, तो लोगों ने कहा कि तम्बाकू नहीं छोड़ सकते, तो गुरू जी ने कहा कि आज ही तम्बाकू छोड़ देते, तो गरीबी भी आज ही दूर हो जाती। जाओ अब कुछ समय के बाद जब मेरे सिक्ख पँजाब में आएँगे, तो गरीबी दूर होगी और यहाँ बड़ा भारी मेला बनेगा और जो शुद्ध दिल से 12 अमावस्या स्नान करेगा, उसकी मन की इच्छाएँ पुरी होंगी और दुख दूर होंगे। गुरू जी ने 2 दिन ओर 3 रातें काटकर और मल्ले नामी तरखाण को निहाल करके और त्रिलोकदास साध का उद्धार करके कतक वदी 7 संमत् बिक्रमी 1723 (सन् 1666) को यहाँ से प्रस्थान किया।

1795. गुरूद्वारा श्री दुख निवारण साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम लाहल, पटियाला सिटी, जिला पटियाला

1796. गुरूद्वारा श्री दुख निवारण साहिब जी पटियाला का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • यह वो पावन पवित्र स्थान है, जिस स्थान पर नवें गुरू तेग बहादर साहिब आए और सबके दुखों का निवारण किया। जब गुरू जी सैफाबाद (बहादरगढ़) में थे, तब भागराम ने गुरू जी से विनती की, कि लाहल गावे से बिमारी जाती नहीं। गुरू साहिब जी ने सैफाबाद से उठकर लाहल गावे के पहाड़ के नीचे माघ सुदी 5, 1728 (24 जनवरी सन् 1672) को आकर विराजमान हुए। गुरू जी एक पेड़ के नीचे विराजमान हुए। साथ ही एक तालाब था, इसी स्थान पर अब गुरूद्वारा श्री दुख निवारण साहिब जी है। गुरू जी का हुक्म हुआ कि जो भी यहाँ पर श्रद्धा के साथ स्नान करेगा, उसके सारे रोग दूर हो जाएँगे। यहाँ पर जो कोई बसन्त पँचमी को स्नान करेगा, उसको सब तीरथों का फल प्राप्त होगा।

1797. गुरूद्वारा श्री चरनकँवल साहिब जी, पटियाला जो कि श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की याद में है, किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम करहाली दकाला, जिला पटियाला

1798. गुरूद्वारा श्री चरनकँवल साहिब, पटियाला का क्या इतिहास है ?

  • इस पवित्र स्थान पर छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने भाई सुरमुख सिक्ख के घर चरण डाले। इस स्थान पर गुरू साहिब जी 40 दिन तक रहे थे।

1799. गुरूद्वारा श्री गढ़ी साहिब जी पातशाही नवीं, पटियाला में किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • समाना सिटी, जिला पटियाला

1800. गुरूद्वारा श्री गढ़ी साहिब, पातशाही नवीं, पटियाला का इतिहास क्या है ?

  • यह पवित्र स्थान नवें गुरू तेग बहादर जी की याद में है। गुरू जी सैफदीन से विदायगी लेकर चले, तो समाए आ गये। यहाँ पर मुहम्मद खाँ को कुछ फौजी मिले, जो गुरू जी को ढूँढ रहे थे। मुहम्मद खाँ ने गुरू प्यार और सत्कार से गुरू जी को गढ़ी नजीर आने के लिए विनती की। मुहम्मद खाँ की विनती मानकर गुरू जी गढ़ी नजीर आ पहुँचे और कुछ समय गढ़ी नजीर ठहरे। यह गुरू जी का दिल्ली जाने का शहीदी मार्ग है। यह गाँव नजीर खाँ के सपुत्र भीखण खाँ ने आबाद किया था। मुहम्मद खाँ इन्हीं के परिवार में से था। इसी कारण इस गाँव का नाम गढ़ी नजीर पड़ गया। इस तरह गुरू जी मुहम्मद खाँ को आर्शीवाद देकर यहाँ से श्री करहाली साहिब जी चले गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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