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1901. गुरूद्वारा 'श्री बाउली साहिब' और 'श्री गोइँदवाल साहिब', जिला तरनतारन का क्या इतिहास है ?

  • गुरूद्वारा श्री गोइँदवाल साहिब जी वो पवित्र स्थान है, जो कि तीसरे गुरू साहिब श्री गुरू अमरदास जी ने तैयार करवाया था। इस स्थान पर श्री बाउली साहिब, जो कि पहला महान सिक्ख तीर्थ है, जो गुरू अमरदास जी ने संमत 1616 (1559) को तैयार करवाया और वर दिया कि जो भी माई-भाई शुद्ध दिल से बाउली साहिब की हर सीड़ी पर एक जपुजी साहिब का पाठ, यानि 84 सीड़ी पर 84 पाठ करके स्नान करेगा, उसकी 84 कट जायेगी। इसकी सेवा चौथे गुरू रामदास जी आप टोकरी उठा कर करते थे।

1902. गुरूद्वारा श्री गुरू का खूह साहिब, जो कि तरनतारन सिटी में है, इसका इतिहास क्या है ?

  • गुरूद्वारा श्री गुरू का खुह साहिब, यहाँ पर स्थित कुँआ (खुह) साहिब पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन देव जी ने बनवाया। संमत् 1647 (सन् 1690) को जब दरबार साहिब तरनतारन साहिब की उसारी आरम्भ हुई, तो गुरू जी रात के समय कार सेवा की समाप्ती उपरान्त इस स्थान पर आकर विश्राम करते थे। गुरू साहिब के पवित्र कर कमलों द्वारा इस कुँए का निर्माण होने के कारण इसका नाम गुरू का खुह (कुँआ) पड़ गया। इस कुँए के जल का सेवन और स्नान करने से कष्ट दूर हो जाते हैं और मन की मुरादें पूरी होती हैं।

1903. गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी साहिब, ग्राम फतेहबाद, जिला तरनतारन साहिब, इसका इतिहास क्या है ?

  • यह गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी ग्राम फतेहबाद में स्थित है। पहले गुरू, श्री गुरू नानक देव जी इस पावन पवित्र स्थान पर अपनी पहली उदासी के समय आए थे और कुछ समय रूके।

1904. गुरूद्वारा श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी, ग्राम सुरसिंघ, तहसील पटटी, जिला तरनतारन साहिब का क्या इतिहास है ?

  • यह पवित्र स्थान गाँव सुरसिंघ में सुशोभित है। इस गाँव के भाई भागमल्ल जी ने छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी को इस स्थान पर आने की विनती की। गुरू जी विनती स्वीकार करते हुए इस स्थान पर आए। भाई भागमल्ल जी ने गुरू जी को भेंट स्वरूप एक महल और 1000 बीघा जमीन दी और यहाँ पर रहने की विनती की। गुरू जी ने विनती मान ली, लेकिन बोले कि वो एक जगह पर ज्यादा समय नहीं ठहर सकते, क्योंकि पँथ को उनकी जरूरत है, कई कार्यों को अन्जाम देना है। कुछ समय रहने के बाद गुरू जी यह जमीन बाबा लालचँद, जो कि भाई बिधीचँद जी के बेटे थे, उन्हें सौंप गए।

1905. गुरूद्वारा श्री जन्म स्थान बाबा दीप सिंघ साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम पहुविंड, तहसील पटटी, जिला तरनतारन साहिब

1906. बाबा दीप सिंघ जी का जन्म कब हुआ था ?

  • 26 जनवरी, सन 1682

1907. बाबा दीप सिंघ जी के माता पिता का क्या नाम था ?

  • माता जीउणी जी, पिता भाई भगता जी

1908. दमदमी टकसाल के प्रचारकों अनुसार किसका एक दिन में 101 श्री जपुजी के पाठ करने का नितनेम था ?

  • बाबा दीप सिंघ जी

1909. किसने श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के चार स्वरूप हाथ से लिखकर पँथ को सौंपे, जिसमें से एक स्वरूप अकाल तखत साहिब (श्री अमृतसर साहिब), दुसरा स्वरूप तखत श्री केशगढ़ (श्री अनंदपुर साहिब), तीसरा स्वरूप पटना साहिब बिहार और चौथा स्वरूप श्री हजुर साहिब नांदेड़ में सुशोभित है ?

  • बाबा दीप सिंघ जी

1910. किसने श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी का एक स्वरूप अरबी भाषा में लिखकर अरब देश में भेजा ताकि अरबी लोग भी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब की की बाणी से जुड़ सकें। वो स्वरूप आज भी अरब देश की बरकले युनिवरसिटी में सुशोभित है।

  • बाबा दीप सिंघ जी

1911. गुरू गोबिन्द सिंघ जी के हुक्म अनुसार बाबा दीप सिंघ जी ने श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के अर्थ-भाव सिक्खों के समझाने के लिए एक टकसाल, शुरू की थी, उस टकसाल का क्या नाम है ?

  • दमदमी टकसाल

1912. बाबा दीप सिंघ जी किस प्रकार शहीद हुए थे ?

  • अहमद शाह अबदाली की हार का बदला लेने के लिए उसके बेटे तैमुर शाह ने अमृतसर के सरोवर को मिटटी से भर दिया। इसकी जानकारी निहंग सिक्ख भाई भाग सिंघ ने बाबा दीप सिंघ जी को तलवँडी साबो आकर दी। खबर सुनकर बाबा जी क्रोध में आ गए और अपने 16 सेर के खण्डे (दो धारी तलवार) को हाथ मे उठाकर, बाकी सिक्खों को साथ लेकर गोहलवड़ गाँव (श्री अमृतसर साहिब जी) आकर मुगल फौज को ललकारा। घमासान जँग में बाबा जी का सामना सेनापति जमाल खाँ से हुआ दोनों ही और से एक जैसा वार हुआ, जिसमें बाबा जी और सेनापति दोनों के शीश धड़ से अलग हो गए। लिखने वाले लिखते हैं कि ये देखकर मौत हंसने लगी कि मैंने बड़े-बड़े सूरमें जीत लिए हैं। तभी अचानक की एक ऐसी अनोखी घटना हुई, जिसकी मिसाल इतिहास में कहीं नहीं मिलती। बाबा दीप सिंघ जी का शरीर हरकत में आया। बाबा जी ने सीधे हाथ में खण्डा और उल्टे हाथ में सीस टिका लिया और लड़ने लग गए, ये देखकर मुगल भौचक्के होकर ऐसे भागे कि पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। आखिर में नवंबर सन् 1757 में बाबा दीप सिंघ जी ने श्री हरिमन्दिर साहिब, अमृतसर साहिब की परिक्रमा में अपना सीस भेंट करके अपना प्रण पूरा किया। श्री अमृतसर साहिब जी की परिक्रमा में शहीदी स्थान सुशोभित है।

1913. गुरूद्वारा श्री जन्म स्थान भाई बिधीचँद जी साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम चीना, जिला तरनतारन साहिब

1914. गुरूद्वारा श्री जन्म स्थान भाई बिधीचंद जी साहिब का इतिहास क्या है ?

  • गुरूद्वारा श्री जन्म स्थान भाई बिधीचँद जी, चीना गाँव में सुशोभित है। भाई साहिब जी सिक्खी के रास्ते पर चलते हुए, पाँचवें गुरू अरजन देव जी, फिर छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की सेवा में थे। भाई बिधीचँद जी को इस कारण याद किया जाता है कि वो अपने अजब साहस से गुरू जी के दो घोड़े– गुलबाग और दिलबाग को लाहौर के किले से वापिस लेकर आए थे। सिक्ख संगत ने श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के लिए दो घोड़े भेजे थे, पर मुगलों ने घोड़े पकड़ लिए। गुरू जी ने संगतों को बोला कि कौन घोड़ों को वापिस लाने का साहस करेगा। भाई बिधीचँद जी ने ऐसी साहस भरी सेवा ली और गुरू जी के दोनों घोड़े एक-एक करके वापिस ले आए। गुरू जी ने बहुत खुश होकर भाई बिधीचँद जी को आर्शीवाद दिया और कहा– "बिधीचँद चीना, गुरू का सीना"।

1915. गुरूद्वारा श्री जन्म स्थान भाई जेठा जी साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम सिद्धवान, तहसील पटटी, जिला तरनतारन साहिब

1916. भाई जेठा जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

  • 11 जेठ संमत् 1611, ईस्वी 1554 को गाँव सिघवां में हुआ था।

1917. भाई जेठा जी के माता पिता जी का क्या नाम था ?

  • पिता का नाम भाई मांढ और माता का नाम बीबी करमी जी था।

1918. भाई जेठा जी को किस किस गुरू साहिबानों की सेवा करने का गौरव प्राप्त है ?

  • 3 गुरू साहिबानों की :
    गुरू रामदास जी
    गुरू अरजन देव जी
    गुरू हरगोबिन्द साहिब जी

1919. वो गुरू साहिबान कौन थे, जो 22 मई 1606 को शहीदी देने के लिए लाहौर गए, तब भाई जेठा जी भी साथ गए थे ?

  • श्री गुरू अरजन देव साहिब जी

1920. किस गुरू साहिबान ने जबर का खात्मा करने के लिए हाड़ 1606 को फौज का गठन किया, जिसमें 4 सैनापति बनाये गए, जिसमें से एक सैनापति भाई जेठा जी भी थे ?

  • श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी

1921. जब भाई गुरदास जी, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी से नाराज होकर बनारस चले गए, तब उन्हें कौन मनाकर लाया था ?

  • भाई जेठा जी

1922. किस गुरू साहिबान जी को जब ग्वालियर के किले में नजरबन्द किया गया था, तब अन्य सिक्खों में भाई जेठा जी भी शामिल थे ?

  • श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी को

1923. भाई जेठा जी ने किस प्रकार बहादुरी से लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की ?

  • पहली जँग 1929 में श्री अमृतसर साहिब में लड़ी गयी थी। भाई जेठा जी ने पहली और दुसरी जँग में अपनी शुरवीरता के जौहर दिखाए थे। गुरू जी ने तीसरी जँग लहिरा मेहराज की धरती पर लड़ी। लड़ाई के मैदान में करम बेग और समश बेग के मारे जाने के बाद कासिम बेग मैदान में आया। गुरू जी ने भाई जेठा जी को पाँच सौ सिंघों का जत्था देकर कासिम बेग का मुकाबला करने के लिए भेज दिया। भाई जेठा जी की उम्र 77 साल की थी। कासिम बेग ने कहा– ओ बुर्जग, तू छोटी सी फौज के साथ अपने आप को नष्ट करने के लिए क्यों आ गया। है, जा इस दुनियाँ में कुछ दिन मौज कर ले। भाई जेठा जी ने उत्तर दिया– मैंने तो जीवन भोग लिया है, पर तूँ अभी छोटा है, तूँ जाकर दुनियाँ का रौनक मैला देख। लड़ाई शुरू हो गई। भाई जेठा जी ने तीर मारकर, कासिम बेग के घोड़े को मार दिया। कासिम बेग को जोर से पकड़कर उसका सिर जमीन पर दे मारा। कासिम बेग तुरन्त मर गया। सैनापति लला बेग अपनी बची हुई सैना लेकर आगे आया। हसन खाँ ने गुरू जी को सलाह दी की भाई जेठा जी को मदद भेजी जाए। गुरू जी ने कहा कि भाई जेठा जी एक शेर की तरह हैं। अपने दुशमनों को खत्म कर देंगे। भाई जेठा द्वारा बरबादी की जाती देखकर लला बेग आगे आया। लला बेग ने बरछे का वार किया, जिसे भाई जेठा जी ने बचा लिया। इस पर लला बेग न अपनी तलवार खींच ली और भाई जेठा जी ने पहला वार झेल लिया। अगली बार लला बेग कामयाब रहा, क्योंकि उसने अपने बहादुर विरोधी के दो टुकड़े कर दिए थे। भाई जेठा जी वाहिगुरू वाहिगुरू करते हुए शहीदी प्राप्त कर गए। श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी लड़ाई के मैदान में घोड़े पर सवार होकर पहुँच गए। गुरू जी ने निशाना मारकर लला बेग के घोड़े को गिरा दिया। लला बेग ने गुरू जी पर तलवार से कई वार किए, जो गुरू जी ने बचा लिए। गुरू जी ने पूरी ताकत से लला बेग पर ऐसा वार किया, जिससे उसका सिर धड़ से अलग हो गया।

1924. गुरूद्वारा श्री झूलने महल साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम थाठी खारा, जिला तरनतारन साहिब

1925. गुरूद्वारा श्री झूलने महल साहिब जी का इतिहास क्या है ?

  • जब पाँचवें गुरू अरजन देव साहिब जी, तरनतारन साहिब जी के पवित्र सरोवर के निर्माण का सँचालन कर रहे थे, तब रात के समय में इस स्थान पर आकर विश्राम करते थे। गुरू साहिब जी इस स्थान पर रोज प्रवचन करते थे। एक बार दीवान सजा हुआ था। गुरू साहिब जी के प्रवचन चल रहे थे। पिछली तरफ से फौज निकल रही थी, उसमें हाथी घोड़े और सैनिक थे। संगत पिछली तरफ उनकी और देखने लग गई। गुरू जी ने पुछा आप सब क्या देख रहे हो। संगतों ने कहा कि हम झुलते हुए हाथी देख रहे हैं। गुरू जी ने कहा आप झुलते हाथी को देख रहे हो। इस महल की दीवार को हिलाओ ये भी झुलेंगी। जब दीवार पर बैठकर इसे हिलाया जाता है, तो हम झुलते हुए महसूस करते हैं। यह करामात आज भी बरकरार है।

1926. गुरूद्वारा श्री खडुर साहिब जी को कितने गुरू साहिबानों जी की चरण धूल प्राप्त है ?

  • 8 गुरू साहिबानों की :
    गुरू नानक देव जी
    गुरू अंगद देव जी
    गुरू अमरदास जी
    गुरू रामदास जी
    गुरू अरजन देव जी
    गुरू हरगोबिन्द साहिब जी
    गुरू हरिराये साहिब जी
    गुरू तेग बहादर साहिब जी

1927. गुरूद्वारा श्री खडुर साहिब जी से संबंधित महत्वपूर्ण इतिहासिक घटनाएँ कौन सी हैं ?

  • 1. आठ गुरू साहिबानों ने अपने चरण डालकर इस धरती, इस स्थान को पवित्र किया। पहले गुरू नानक देव जी ने अपनी यात्रा के दौरान पाँच बार इस स्थान पर चरण डाले। आप अक्सर बीबी भराई के घर ठहरते थे। आखिरी यात्रा के समय बीबी भराई जी ने एक दिन और ठहरने की विनती की, तो गुरू जी ने बचन किया कि एक दिन नहीं बहुत दिन ठहरेंगे, और ऐसे ही चारपाही पर विश्राम करेंगे, जिस पर अभी बैठे हैं।
    2. श्री गुरू अंगद देव जी दुसरे गुरू बने तो, श्री गुरू नानक देव जी के आदेश अनुसार खडूर साहिब आकर सीधे बीबी भराई जी के घर पर 6 महीने 6 दिन तक अज्ञातवास में रहकर नाम सिमरन में लगे रहे। आपने उसी चारपाही पर विश्राम किया, जिसके बारे में श्री गुरू नानक देव जी बचन करके गये थे। आखिर बाबा बुड्डा जी ने आपको ढूँढ लिया। श्री गुरू अंगद देव जी ने अपनी गुरयाई का सारा समय लगभग यहीं पर विचरकर संगतों को नाम उपदेश से निवाजा और अन्त में यहीं से 18 मार्च सन् 1552 ईस्वी में जोती-जोत समा गए।
    3. तीसरे गुरू अमरदास जी 1541 ईस्वी को श्री गुरू अंगद देव जी के चरणों में आए। लगभग 12 साल सेवा सिमरन के साथ-साथ 12 साल तक बियास दरिया से जो कि 9 किलोमीटर की दूरी पर है, गागर में जल लेकर श्री गुरू अंगद देव जी को अमृत वेले (ब्रहम समय) में स्नान करवाते रहे, उनकी सेवा परवान हुई और गुरतागद्दी के भागी बने।
    4. चौथे गुरू, श्री गुरू रामदास जी, श्री गोइँदवाल साहिब जी से गुरू चक्क ("श्री अमृतसर साहिब") जाते हुए, श्री खडूर साहिब जी में चरण डालते रहे।
    5. पांचवे गुरू, "श्री गुरू अरजन देव" जी भी श्री अमृतसर साहिब जाते समय श्री खडूर साहिब विराजते रहे।
    6. छठवें "गुरू हरगोबिन्द साहिब" जी भी अपनी पुत्री बीबी वीरो जी के विवाह के बाद श्री खडूर साहिब पहुँचे। वहीं जब सिक्ख पँथ के महान विद्वान भाई गुरदास जी का सँस्कार करके श्री अमृतसर साहिब जी जाते समय दोपहर के समय श्री खडूर साहिब जी गुजार कर गए।
    7. सातवें गुरू श्री हरिराय साहिब जी 2000 घुड़सवारों समेत श्री गोइँदवाल साहिब जी को जाते समय, श्री खडूर साहिब जी को अपनी चरण धूल बक्श कर गए।
    8. नवें "गुरू तेग बहादर साहिब" जी गुरगद्दी पर विराजमान होने के बाद, पहले गुरू साहिबानों से संबंधित गुरूधामों की देखभाल का योग्य प्रबंध करने की खातिर श्री खडूर साहिब जी आए थे।
    9. ब्रहम ज्ञानी बाबा बुड्डा साहिब जी ने लगभग 12 साल का समय यहीं गुजारा। यहीं पर आपने श्री गुरू अमरदास जी को गुरयाई का तिलक लगाया था।
    10. महान विद्वान भाई गुरदास जी ने बहुत सारा समय यहीं पर व्यतीत किया था।
    11. श्री गुरू अंगद देव जी ने यहीं पर गुरमुखी लिपी का सुधार करके वर्तमान रूप दिया और पँजाबी का सबसे पहला कायदा अपने हाथों से लिखा, जिसकी याद में गुरूद्वारा मलअखाड़ा सुशोभित है। यहीं पर आपने बाला जी से सारी जानकारी प्राप्त करकें भाई पैड़ा मोखा जी से श्री गुरू नानक देव जी की जन्म-साखी लिखवाई। भाई बाला जी का समाधी गुरूद्वारा तपिआणा साहिब जी के पास बना है। यहीं पर गुरू अंगद देव जी ने गुरू नानक देव जी की बाणी की सम्भाल की और अपनी बाणी की रचना की।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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