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1. फैजलपुरिया अथवा सिंघपुरिया मिसल

सर्वप्रथम फैजलपुरिया मिसल की उत्पत्ति हुई, जिसके नेता नवाब कपूर सिंह जी थे। नवाब कपूर सिंह जी ने फैजलपुरिया गाँव को अपने अधिकार में कर लिया और उसका नाम सिंघपुर रखा, जिसके कारण इस मिसल का नाम सिंघपुरिया मिसल प्रसिद्ध हो गया। नवाब कपूर सिंघ जी एक जाट किसान दिलीप सिंघ जी के लड़के थे। जो फैजलपुर गाँव के रहने वाले थे। उसने भाई मनी सिंघ जी से, जो दरबार साहिब, श्री अमृतसर साहिब जी के सबसे बड़े ग्रन्थी थे, अमृत का पाहुल ग्रहण किया। सिक्ख जगत में उनका बहुत मान था और वही सन् 1733 ईस्वी से 1748 ईस्वी तक सिक्खों के धार्मिक और राजनीतिक नेता बने रहे। जब कभी कोई अवसर आ पड़ता, तब नवाब कपूर सिंह जी ही सबसे पहले कार्यक्षेत्र में उतरते। कहा जाता है कि विभिन्न लड़ाइयों में भाग लेने के कारण उनके शरीर पर 43 घावों के निशान थे। वे जितने बहादुर सेनानायक थे, उतने ही धर्म प्रचारक भी थे। जिसने कई छोटी छोटी जाति वाले लोगों को काफी सँख्या में सिंघ सजाया (सिक्ख बनाया)। सरदार जस्सा सिंघ आहलूवालिया और आला सिंघ पटियाले वाले ने नवाब कपूर सिंघ जी से अमृत का पाहुल धारण किया था। जब मुगल साम्राज्य पँजाब में सिक्खों से प्रतिदिन के टकराव की कार्यवाहियों से तँग आ गया तो लाहौर के राज्यपाल जक्रिया खान ने दिल्ली में बैठे सम्राट को सिक्खों से समझौता करने के लिए लिखा। अतः सम्राट की तरफ से सिक्ख नेता सरदार कपूर सिंघ जी को ‘नवाब’ की उपाधि के साथ सम्मानित करके एक लाख रूपये की जागीर दे दी गई। यह घटना 1753 ईस्वी की है। नवाब कपूर सिंघ जी 1784 ईस्वी तक समस्त सिक्खों के राजनैतिक नेता बने रहे और वह सफलतापूर्वक सिक्खों की समस्याओं को सुलझाने में सफल हुए। अन्त में जब वह काफी वृद्ध हो गए तब उन्होंने अपने उत्तराधिकारी का चयन करके अपने स्थान पर सरदार जस्सा सिंघ आहलूवालिया जी को दल खालसा का नेतृत्त्व सौंप दिया। नवाब कपूर सिंघ जी सिक्खों की सैनिक समस्याओं के अतिरिक्त धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का भी समाधान करते रहते थे। आप सन् 1753 ईस्वी में परलोक सिधार गए। नवाब साहिब जी ने ठीक उस समय सिक्खों का नेतृत्त्व किया जिस समय सिक्खों के विरूद्ध मुगल साम्राज्य की ओर से अत्याचार और हिंसा की नीति जोरों पर थी परन्तु उन्होंने अपने अमूल्य नेतृत्त्व से सिक्खों को बार-बार विनाश से बचाया। उनकी मृत्यु पर उनका भतीजा खुशहाल सिंघ उनका उत्तराधिकारी बनाया गया। अपने चाचा की भान्ति खुशहाल सिंह भी एक उच्च कोटि का सेनानायक थे जिन्होंने अपने जीवन में काफी विजय प्राप्त कीं। 1706 में खुशहाल सिंह की मृत्यु पर उसका बड़ा पुत्र बुद्धु सिंह उनके स्थान पर उत्तराधिकारी बन गए। इस मिसल का राज्य सतलुज नदी के दोनों ओर के प्रदेशों पर था, जिनमें जालन्धर और पट्टी के प्रदेश भी सम्मिलित थे। नवाब कपूर सिंह के समय इस मिसल के पास अढ़ाई हजार से तीन हजार तक सैनिकों की फौज थी। चाहे वह मिसल इतनी शक्तिशाली न थी फिर भी नवाब कपूर सिंह और खुशहाल सिंह के व्यक्तिगत प्रभाव के कारण उनके काल में इस मिसल का अन्य मिसलों पर बहुत जोर और दबदबा था। अन्त में महाराजा रणजीत सिंह ने सन् 1816 ईस्वी में इस मिसल के सभी प्रदेश को अपने अधिकार में ले लिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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