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3. रामगढ़िया मिसल

रामगढ़िया मिसल का सँस्थापक सरदार जस्सा सिंह इच्छोगिलिया था। जस्सा सिंह ने राम रोहणी के दुर्ग को सिक्खों से लेकर उसकी मरम्मत की और उसका नाम बदलकर रामगढ़ रखा, इसलिए इस मिसल का नाम रामगढ़िया मिसल पड़ गया। यहाँ यह लिखना अनिवार्य होगा कि रामगढ़िया कोई जाति नहीं। इस मिसल के पास श्री अमृतसर साहिब जी के उत्तर में रियाड़की का प्रदेश था। कुछ भाग जालन्धर दोआबा का भी इस मिसल के पास था। इसके अतिरिक्त बटाला और कलानौर के प्रदेश भी उनके पास थे। इस मिसल की सैनिक शक्ति तीन हजार घुड़सवारों की थी। इस मिसल के सँस्थापक सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया अथवा इच्छोगिलिया का जीवन वृतान्त इस प्रकार है। सरदार जस्सा सिंह का जन्म ज्ञानी भगवान सिंह के घर सन् 1723 ईस्वी में हुआ। आपका गाँव इच्छोगिलिया था। अतः आपकी सन्तानों को इच्छोगिलिया नाम से जाना जाता था परन्तु जब जस्सा सिंह ने रामरोहणी का पुनः निर्माण करवाया तो वह सिक्खों में रामगढ़िया नाम से पहचाने जाने लगे ताकि दूसरे सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया से उनकी भिन्नता प्रकट कर सकें। युवा होकर जस्सा सिंह रामगढ़िया ने अपने लिए सैनिक व्यवसाय चुन लिया और थोड़े ही समय में वह अपनी वीरता और निर्भीकता के कारण सिक्खों में एक योग्य सेनानायक प्रसिद्ध हो गए। उस समय खान बहादुर जक्रिया खान लाहौर का राज्यपाल था, जिसने 1733 ईस्वी तक सिक्खों के विरूद्ध हिंसा की नीति अपना रखी थी किन्तु सिक्खों की शक्ति के आगे जब वह उनसे समझौता करने पर विवश हो गया तब जालन्धर के फौजदार अदीना बेग ने सिक्खों की एक सेना तैयार करनी चाही तो जस्सा सिंह रामगढ़िया उसकी नौकरी में चला गया। इसी बीच सिक्खों ने जस्सा सिंह रामगढ़िया को सिक्ख बिरादरी से निष्कासित कर दिया। पँजाब का नया राज्यपाल मीर मन्नू सिक्खों की शक्ति को समाप्त करना चाहता था, इसलिए जब उसने अदीना बेग को सिक्खों को जीतने के लिए भेजा तो उसके साथ जस्सा सिंह रामगढ़िया भी था। अब उनकी सम्मिलित सेनाओं ने सिक्खों के श्री अमृतसर साहिब जी स्थित किले रामरोहणी को घेर लिया। इस घेरे में सिक्खों के लगभग दो सौ व्यक्ति मारे गए और तीन सौ किले में रह गए। किले के अन्दर सुरक्षित सिक्खों के सैनिक नारों की आवाज़ सुनकर सरदार रामगढ़िया की धार्मिक भावनाएँ भड़क उठीं और उनके हृदय में अपने प्रति बड़ी ग्लानि उत्पन्न हुई। उसने एक पत्र लिखकर, जिसमें उसने दल खालसा पँथ से क्षमा याचना की और दुर्ग में सुरक्षित सिक्खों के साथ होकर मुगलों के विरूद्ध लड़ने की इच्छा प्रकट की। यह सँदेश तीर द्वारा किले के अन्दर फैंका। पँथ ने उसे क्षमा कर दिया और उसे किले में प्रविष्ट होने की आज्ञा दे दी गई। इस प्रकार जस्सा सिंह रामगढ़िया अपने साथियों सहित अदीना बेग की सेना से निकलकर किले के भीतर प्रविष्ट हो गया। उसे और उसकी सेना को देखकर अन्दर के सिक्खों का साहस दुगुना हो गया। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के कारण मीर मन्नू ने विवशता में रामरोणही के किले का घेराव समाप्त कर दिया और वहाँ से सेना हटाकर चनाब नदी के तट पर सेना तैनात कर दी। ज्योंहि मीर मन्नू की मृत्यु के बाद पँजाब में अशान्ति फैली, जस्सा सिंह रामगढ़िया ने अपनी शक्ति और अपने प्रदेश का विस्तार करना शुरू कर दिया । उसने अमृतसर के उत्तर के क्षेत्र रियाड़की को अपने अधिकार में कर लिया तथा जालन्धर दोआब के बहुत से प्रदेश पर भी अपना कब्जा जमा लिया। किन्तु रामगढ़िया की बढ़ती हुई शक्ति और मेलजोल को देखकर अन्य मिसलों के सरदार उन्हें ईर्ष्या की दृष्टि से देखने लगे। अन्त में जस्सा सिंह आहलूवालिया, जय सिंह कन्हैया, चढ़त सिंह सुक्रचकिया और हरि सिंह भँगी एक सम्मिलित गुट बनाकर जस्सा सिंह रामगढ़िया पर टूट पड़े। जस्सा सिंह रामगढ़िया पराजित होकर 1777 में सतलुज नदी के दक्षिण की ओर भाग जाने पर विवश हुआ। इससे एक बात का परिणाम निकलता है कि जस्सा सिंह रामगढ़िया का बल उस समय काफी बढ़ चुका था और किसी एक सरदार के लिए अकेला उसे पराजित करना कठिन बात थी। पराजित होकर भाग जाने के बाद जस्सा सिंह रामगढ़िया पँजाब के मालवा प्रदेश की ओर चला गया, जहाँ उसने पटियाला के राजा अमर सिंह से सहायता प्राप्त की। इस सहायता से उसने हिसार में सिरसा के आसपास का कुछ प्रदेश जीत लिया और उस प्रदेश को केन्द्र बनाकर उसने दिल्ली तक के प्रदेशों पर मार करना आरम्भ कर दिया। जहाँ तक कि वह एक बार दिल्ली नगर में प्रविष्ट होकर मुगलों के महलों से एक अनेक रँगों वाली पत्थर की शिला उड़ाकर ले आया। फिर उसने मेरठ पर भी आक्रमण किया और वहाँ के मुस्लिम फौजदार से काफी धन टैक्स के रूप में प्राप्त किया। हिसार के मुस्लिम फौजदार ने दो हिन्दू लड़कियों का सतीत्त्व भँग किया था, उसे दण्ड दिया। जस्सा सिंह आहलूवालिया 1783 ईस्वी में परलोक सिधार गए। तब जस्सा सिंह रामगढ़िया ने उनकी मृत्यु से लाभ उठाया और मध्य पँजाब में आकर वह अपने पुराने प्रदेश को वापिस लेने की कोशिश करने लगे। थोड़े ही समय में उसने रियाड़की और जालन्धर दोआबा का बहुत सा प्रदेश फिर अपने अधिकार में कर लिया। उन्होंने श्री हरिगोबिन्दपुर को अपनी राजधानी बनाया और कलानौर कादियान, घुमन, दीनानगर तथा दोआबा के कुछ प्रदेशों पर भी अधिकार कर लिया। उन दिनों दूसरी तरफ महाराजा रणजीत सिंह भी पँजाब पर अधिकार करने की चिन्ता में थे। वह लाहौर पर 1799 ईस्वी में अधिकार कर चुके थे। रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति को समाप्त करने के लिए जस्सा सिंह रामगढ़िया गुलाब सिंह भँगी और कसूर के नवाब निजामुद्दीन ने सम्मिलित मोर्चा बनाकर महाराजा रणजीत सिंह का सामना भसीन नामक स्थान पर सन् 1800 ईस्वी में किया, परन्तु उन सबको पराजय का मुँह देखना पड़ा। जस्सा सिंह रामगढ़िया का 1803 ईस्वी में देहान्त हो गया। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनका पुत्र जोध सिंह उनका उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। महाराजा रणजीत सिंह जी ने जोध सिंह रामगढ़िया से मित्रता स्थापित कर ली और जब तक वह जीवित रहे, रणजीत सिंह ने उनके प्रदेश पर कोई आक्रमण नहीं किया परन्तु 1814 ईस्वी में जोध सिंह की मृत्यु हो जाने पर महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़िया मिसल के सभी प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया और उसके उत्तराधिकारी को एक अच्छी जागीर देकर चुप करा दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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