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4. भँगी मिसल

भँगी मिसल के सँस्थापक सरदार हरि सिंह जी थे। इस मिसल के पूर्वज सरदार छज्जा सिंह जी ने अपने क्षेत्र के जाटों को एकत्रित करके सभी को सिक्ख बनने के लिए प्रेरित किया और एक अलग से जत्था बनाकर दुष्ट मुगलों के अत्याचारों का सामना करने लगे। आपके बाद आपके भाई भीम सिंह ने इस मिसल का नेतृत्त्व सम्भाला। भाई भीम सिंह को सरदार छज्जा सिंह जी ने अमृत धारण करवाकर सिंघ सजाया था। अमृतपान करने के उपरान्त भाई भीम सिंह ने काफी नाम कमाया। इस जत्थे ने नादिरशाह से भारतीय महिलाओं को छुड़ाने में सक्रिय भाग लिया और नादिरशाह की लूट के माल को भी हथिया लिया। भीम सिंह के उपरान्त इस जत्थे की जत्थेदारी सरदार हरी सिंह के पास आ गई। सरदार हरी सिंह भीम सिंह के भतीजे थे और उन्होंने उनको अपना धर्मपुत्र बनाया हुआ था। सरदार हरी सिंह भाई भूप सिंह परोह के जमींदार के लड़के थे। सिक्ख मिसलों में भँगी मिसल एक प्रभावशाली मिसल मानी जाती है। प्रारम्भ में फैजलपुरिया और आहलूवालिया मिसलों का ही नाम था। वे दोनों मिसले ही सारे पँथ के सम्मान की पात्र थी परन्तु अहमदशाह अदाली के पराजित होकर मरने के बाद इन मिसलों ने आपस में अपने क्षेत्र के विस्तार की प्रतिस्पर्धा में हिस्सा नहीं लिया अतः ये मिसले क्षेत्रफल की दृष्टि से पीछे रह गईं। इस समय रामगढ़िया मिसल का प्रभाव क्षेत्र सतलुज नदी के पार के क्षेत्रों में हो गया। जब वह फिर पँजाब में हस्तक्षेप करने योग्य हुए तो भँगी मिसल का प्रभाव शिखर पर था। उन दिनों कन्हैया मिसल भी शक्तिशाली मिसलों में से एक गिनी जाने लगी थी। इतिहासकारों का विचार है कि भँगी मिसल यदि सतर्कता से कार्य करती तो शक्रचकिया मिसल के स्थान पर पूरे पँजाब पर इस मिसल का ही राज्य स्थापित होना था परन्तु यह भी ठीक है कि समय बड़ा बलवान है, प्रकृति के नियमों के आगे किसकी चलती है। भँगी मिसल शक्ति और प्रदेश विस्तार की दृष्टि से सब मिसलों से शक्तिशाली थी। उसका मुख्यालय श्री अमृतसर साहिब जी था और उसके अधीन पन्द्रह से बीस हजार सेना थी। पँजाब के दोनों प्रसिद्ध नगर लाहौर और अमृतसर इस मिसल के अधिकार में थे। गुजरात, झेलम नदी और रावलपिंडी के बीच का प्रदेश भी इसी मिसल के अधिकार में था ?। इसके अतिरिक्त लाहौर से पाकपट्टन के बीच का प्रदेश भी इस मिसल के अधीन था। हरि सिंह भँगी ने मुलतान को जीतने की भी कोशिश की, किन्तु वह सफल न हो सका। चाहे वह मुलतान न ले सका फिर भी पाकपट्टन तक सभी प्रदेश तो उसने अपने अधिकार में कर ही लिए थे। इस मिसल की आय पन्द्रह लाख रूपया वार्षिक थी। श्री अमृतसर साहिब जी में हरिसिंह ने एक कटरा (भँगिया) भी बनवाया था, जो आज भी विद्यमान है। हरिसिंह भँगी सन् 1764 ईस्वी में एक युद्ध में मारे गए। सरदार हरी सिंह बहुत स्वाभिमानी तथा प्रगतिशील योद्धा थे। जब वह रणक्षेत्र में जूझते थे तो ऐसा जान पड़ता था कि वह वीर रस में अलमस्त, मृत्यु की चिन्ता से ऊपर उठकर नृत्य करते हुए (लोटन बावरे) दृष्टिगोचर होते। शत्रु यह समझते थे कि जत्थेदार हरि सिंह जी ने भाँग पी हुई है। अतः इस प्रकार जत्थेदार हरी सिंह जी के नाम के साथ भँगी शब्द जुड़ गया। इस प्रकार इनकी मिसल को भँगी नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इस मिसल ने सन् 1767 ईस्वी में लाहौर पर नियन्त्रण कर लिया, बस फिर जल्दी ही अपना अधिकार तथा प्रभाव क्षेत्र बढ़ाते चले गए। जो अधिकार क्षेत्र पहले अमृतसर के आसपास ही सीमित था, वह बढ़कर चिनौट तथा झँग तक चला गया। स्यालकोट, नारोवाल तथा करिआल पर भी कब्जा किया। तद्पश्चात् रावलपिंडी को कब्जे में लिया, रावलपिंडी पर नियन्त्रण करने वाला सरदार मिलखा सिंह था। जम्मू के राजा रणजीत देव को अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया तथा खिराज नज़राना वसूल किया। यहाँ तक बस नहीं हुई, सिन्धू नदी के उस पार के क्षेत्रों में भी इस मिसल ने खालसा पँथ की पताका लहराई। इस मिसल के सरदार रण सिंह बूड़िया ने यमुना नदी के पार के क्षेत्रों पर अपना ध्वज लहराया। एक बार महाराजा रणजीत सिंह ने भी अधीनता स्वीकार की। भँगी मिसल के सरदारों ने कश्मीर फतेह करने की योजना बनाई परन्तु वह इसमें सफल न हो सके। हरिसिंह की मृत्यु पर उसका पुत्र झण्डा सिंह उसके स्थान पर उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। उसने इस मिसल को काफी उन्नति के शिखर तक पहुँचाया। उसने जम्मू पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा रणजीत देव से खिराज प्राप्त किया। उसने सराय के नवाब पर भी आक्रमण किया और जमजमा तोप को अपने अधिकार में कर लिया। उसने कसूर के नवाब से भी भेंट प्राप्त की। 1774 ईस्वी में जय सिंह कन्हैया मिसल ने एक सिक्ख को प्रलोभन देकर जम्मू के निकट एक लड़ाई में झण्डा सिंह को धोखे से कत्ल करवा दिया। झण्डा सिंह की हत्या पर उसका भाई गण्डा सिंह उसकी गद्दी पर नियुक्त हुआ। उसने इस मिसल की शक्ति को और भी बढ़ा दिया, किन्तु 1782 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उस मिसल में और कोई शक्तिशाली नेता उत्पन्न न हुआ। महाराजा रणजीत सिंह ने, जो इस समय काफी शक्ति पकड़ चुके थे, ने बड़ी आसानी से 1799 ईस्वी में भँगी सरदारों से लाहौर हथिया लिया, जल्दी ही श्री अमृतसर नगर पर भी अपना नियन्त्रण कर लिया। सन् 1806 ईस्वी में भँगी सरदारों ने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार करके एक लाख रूपये की जागीर प्राप्त कर ली। इस प्रकार इस मिसल का विलय महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में हो गया। सन् 1811 ईस्वी में भँगी मिसल के सरदार साहिब सिंह जी का भी निधन हो गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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